वक़्त का घटना
◆जैसा कि हम देख रहे हैं और खुद महसूस कर रहे हैं कि वक़्त कितनी तेज़ी से भाग रहा है,दिन हफ्ता महीना तो छोड़िए साल कब और कैसे गुज़र जाता है बिल्कुल पता ही नहीं चलता,ये भी क़यामत की निशानी है और हदीसे पाक में इसका भी तज़किरा मौजूद है
◆हुज़ूरﷺ फ़रमाते हैं कि जब क़यामत क़रीब होगी तो ज़माना क़रीब हो जाएगा यानि थोड़ा रह जाएगा तो साल महीनो की तरह महीने हफ़्तों की तरह और हफ्ता इतनी जल्दी गुज़र जाएगा जितनी देर में एक खजूर की टहनी जलकर राख हो जाए
हवाला ( कंज़ुल उम्माल, जिल्द 14, सफ़्हा 227)
◆अब ये हो कैसे रहा है आईये समझते हैं,सूरज चांद सितारे सब ही ज़मीन के इर्द गिर्द चक्कर काटते रहते हैं और इनकी हरकत नस्से क़तई से साबित है मगर साइंस दां का ये कहना कि ज़मीन भी घूमती है हरगिज़ सही नहीं,
◆आलाहज़रत अज़ीमुल बरक़त रदियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि ज़मीन और आसमान दोनों साकिन हैं यानि ठहरे हुए हैं
हवाला [ फ़तावा रज़वियह, जिल्द 9, सफ़्हा 177
◆चांद ज़मीन से चार गुना छोटा है और तक़रीबन दो लाख मील से ज़्यादा दूरी पर है और सूरज ज़मीन से तक़रीबन तेरह लाख गुना बड़ा है और 9 करोड़ 30 लाख मील की दूरी पर है
हवाला [ इस्लाम और चांद का सफर, सफ़्हा 51-55】
◆क़ुरान में अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फ़रमाता है कि
◆और सूरज चलता है अपने ठहराव के लिए
हवाला [ पारा 23, सूरह यासीन, आयत 38]
◆दूसरी जगह इरशाद फ़रमाता है कि
◆जब धूप लपेट दी जाए
हवाला (पारा 30, सूरह तक़वीर, आयत 1)
◆इसकी तफ़सीर में इमाम राज़ी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं कि
◆जब सूरज को फ़लक से नीचे डाल दिया जायेगा
हवाला (तफ़सीरे कबीर, जिल्द 31, सफ़्हा 66)
◆अब इन सबका निचोड़ आसान लफ़्ज़ों में समझाता हूं,जैसा कि आपने पढ़ लिया कि सूरज अपने मुस्तक़र की तरफ़ रवां दवां हैं और किसी भी मुस्तक़र पर ठहरता नहीं बल्कि फिर चल पड़ता है और उसका चलना ज़मीन के चारों तरफ घूमना ही है जो कि क़यामत तक जारी रहेगा,तो हुआ यूं कि जैसे जैसे क़यामत क़रीब होती जा रही है अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त सूरज को ज़मीन के क़रीब करता जा रहा है जिससे उसकी रफ़्तार तेज़ हो गई है इसको मिसाल के तौर पर समझाता हूं आप में से बहुत से ख़ुशनसीब लोग हरम शरीफ की ज़ियारत किये होंगे और जो लोग नहीं भी कर पाएं है मौला उनको ज़ियारत नसीब अता फरमाये आमीन
◆मगर कम से कम तसवीर में तो काबा मुअज़्ज़मा हर शख्स ने देखा ही होगा अब समझिए कि अगर काबा शरीफ का तवाफ़ उसके बगल से किया जाए तो एक चक्कर काटने में कितना वक़्त लगेगा मुश्किल से 2 या 3 मिनट मगर वहीं एक शख्स बहुत दूर से काबा शरीफ का तवाफ़ कर रहा है तो उसको एक चक्कर काटने में कितना वक़्त लगेगा 10,11 मिनट,क्यों,क्योंकि एक ने क़रीब से चक्कर काटे और एक ने दूर से तो यक़ीनन चक्कर एक ही कहलायेगा मगर चूंकि पास वाले की मुसाफत कम हुई तो कम वक़्त में उसका एक चक्कर पूरा हो गया बस इसी तरह सूरज निकल तो पूरब से ही रहा है और डूब भी पश्चिम में ही रहा है मगर उसका ज़मीन का चक्कर काटने में अब कमी होती जा रही है इसी वजह से वक़्त तेज़ी से गुज़र जाता है,और जैसे जैसे सूरज ज़मीन से क़रीब होगा तो ग्लेशियर भी पिघलती जायेगी और मौसम की तब्दीली भी यक़ीनन होगी जिसका मुशाहिदा हमें रोज़ बरोज़ हो ही रहा है
हवाला ( आसारे क़यामत, सफ़्हा 58 )
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