FANAA
आशूरह जुमा का दिन,लोग अपने अपने कामों में लगे होंगे कोई जानवर को चारा लगा चुका होगा और दूध दुहने को तैयार हो रहा होगा कोई कपड़ा खरीद रहा होगा तो कोई खाना खाने बैठा होगा कि अचानक एक आवाज़ सुनाई देगी जो पहले तो सीटी की तरह हलके हलके शुरू होगी और बढ़ते बढ़ते इस हद तक हो जायेगी कि बिजली की गरज उसके सामने हल्की मालूम होगी लोग दहशत से मरने लगेंगे,बादल फट पड़ेगा ज़मीन फट जायेगी समन्दर उबल पड़ेगा आसमान टूटकर गिर जायेगा सितारे चांद सूरज झड़ जायेंगे पहाड़ रुई की तरह उड़ते फिरेंगे,फरिश्ते इसी अश्ना में इब्लीस लईन को ढूंढ़ रहे होंगे कि उसकी रूह क़ब्ज़ करें और वो भागता फिरेगा हत्ता कि एक मक़ाम पर उसकी रूह क़ब्ज़ की जायेगी और बनी आदम पर हर हर इंसान को जितनी तकलीफ मौत की हुई होगी वो सब इकठ्ठा करके उस लईन पर डाली जायेगी,यहां तक कि सब कुछ फना हो जायेगा जिन 7 चीज़ों यानि अर्श-कुर्सी-लौह-क़लम-रूह-जन्नत-दोज़ख के बारे में आता है कि ये फना नहीं होंगे एक लम्हा के लिए उनको भी फना कर दिया जायेगा,तमाम फरिश्ते यहां तक कि हज़रत इस्राफील अलैहिस्सलाम और उनका सूर भी फना हो जायेंगे,मलकुल मौत अलैहिस्सलाम रब की बारगाह में अर्ज़ करेंगे मौला सब मर गए बस तेरा ये बंदा रह गया तो रब फरमायेगा कि तू भी मर जा और वो भी मर जायेंगे,अब सिर्फ एक बादशाह की बादशाहत होगी फिर वो पुकारेगा कि आज किसकी बादशाहत है अब कौन है जो उसे जवाब दे फिर खुद ही कहेगा कि "लिल्लाहिल वाहेदिल क़हहार" यानि आज बस एक खुदा की बादशाहत है,फिर जब वो चाहेगा तो हज़रत इस्राफील को ज़िंदा करेगा और दोबारा सूर फूंकने का हुक्म देगा याद रहे कि हर सूर की मुसाफत 6 माह की होगी और दोनों सूर के बीच 40 साल की मुद्दत होगी
हवाला ( ज़लज़लातुस सा'अत,सफह 15-17)
हवाला ( बहारे शरियत,हिस्सा 1,सफह 34)
हवाला (जलालैन,पारा 8,सफह 277)
हवाला (खज़ाएनुल इरफान,सफह 553)
अर्श
अर्श मख़लूक़ात में सबसे बड़ा जिस्म है जो कि हरकत व सुक़ून क़ुबूल करता है
हवाला ( मवाहिबुल लदुनिया,जिल्द 1,सफह 118)
सातों ज़मीन और आसमान कुर्सी के सामने ऐसे हैं जैसे कि एक बहुत बड़े मैदान में छोटा सा छल्ला पड़ा हो उसी तरह कुर्सी अर्श के सामने ऐसे ही है जैसे कि एक बहुत बड़े मैदान में छोटा सा छल्ला
हवाला ( अलमलफ़ूज़,हिस्सा 4,सफह 64)
अर्श को उठाने वाले 4 फ़रिश्ते हैं जिनके पंजों से घुटनों तक का फासला 500 साल की राह है
हवाला ( ख़ाज़िन,जिल्द 7,सफह 120)
कुर्सी
कुर्सी सातवीं ज़मीन के ऊपर है जिसे 4 फ़रिश्ते उठाये हुए हैं और उसके ऊपर अर्श है
हवाला ( तफ़सीरे सावी,जिल्द 1,सफह 107)
अर्श के उठाने वाले फरिश्तों और कुर्सी के उठाने वाले फरिश्तों के बीच 70 हिजाब तारीकी के और 70 हिजाब नूर के हैं और हर हिजाब की मोटाई 500 साल की राह है अगर ऐसा न होता तो कुर्सी के उठाने वाले फ़रिश्ते अर्श के उठाने वाले फरिश्तों के नूर से जल जाते
हवाला ( ख़ाज़िन,जिल्द 7,सफह 228)
लौहे महफूज़
लौह सफ़ेद मोती से बना हुआ है अर्श से मिला हुआ उसकी दाहिनी तरफ़ से ऊपर का हिस्सा है और जिसका नीचे का हिस्सा एक फ़रिश्ते की गोद में है,लौह को लौह इसलिये कहते हैं कि वो ज़्यादती व नुकसान व शैतान के तसर्रुफ़ से पाक है
हवाला ( ख़ाज़िन,जिल्द 7,सफह 193)
लौहे महफूज़ में लिखा हुआ क़ुरान का हर हुरूफ़ कोहे क़ाफ़ के जितना बड़ा है और उसके नीचे उसका माअना भी दर्ज है
हवाला ( अलइतकान,जिल्द 1,सफह 58)
लौह का इल्म अल्लाह के सिवा उसके दिये से उसके रसूलों को और उसके वालियों को भी है
हवाला ( अलमलफ़ूज़,हिस्सा 1,सफह 66)
लौह के बीचों बीच ये अलफ़ाज़ लिखे हैं जिनका तर्जुमा ये है कि " अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं वो एक है उसका दीन इस्लाम है मुहम्मद उसके बन्दे और रसूल हैं,तो जो अल्लाह पर ईमान लाएगा और उसके वादे की तस्दीक करेगा और उसके रसूलों की पैरवी करेगा अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल करेगा
हवाला ( हाशिया 9,जलालैन,सफह 496)
क़लम
क़लम नूर का है इसकी लंबाई 500 साल की राह है सबसे पहले लौह पर बिसमिल्लाह शरीफ लिखा उसके बाद अल्लाह की तौहीदो तारीफ़ लिखी फिर क़यामत तक जो कुछ होने वाला था सब लिख दिया,बाज़ रिवायतों में इसकी तादाद 12 आयी है जिनके अलग अलग नाम और मर्तबे हैं
हवाला ( मदारेजुन नुबूव्वत,जिल्द 1,सफह 303
रूह
इसका सही इल्म तो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त को ही है हां बाज़ किताबों में युं आता है कि रूह एक लतीफ़ जिस्म जो कि कसीफ़ जिस्मों के साथ मिली हुई है जैसे हरी लकड़ी में पानी
हवाला ( शराहुस सुदूर,सफह 133)
रूह के पैदा होने की कई रिवायत हैं आलाहज़रत जिस्म से 2000 साल पहले फरमाते हैं
हवाला ( फतावा रज़वियह,जिल्द 9,सफह 65)
इंसान के जिस्म में रूह बादशाह है जिसके 2 वज़ीर हैं एक नफ़्स जिसका मरकज़ नाफ़ के नीचे है और दूसरा क़ल्ब जिसका मरकज़ सीने के बाएं तरफ़ का वो हिस्सा जिसे दिल भी कहा जाता है
हवाला ( अलमलफ़ूज़,हिस्सा 3,सफह 63)
इंसान के अंदर 6 बार रूह दाखिल हुई या होगी
1. मीसाक के दिन दाखिल हुई जब अल्लाह ने आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त से उनकी ज़ुर्रियत निकाली और सबसे अपनी रबूबियत का इक़रार लिया
2. जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खानए काबा की तामीर की तो रब के हुक्म पर आपने हज का एलान किया जिसे तमाम इन्सानों ने सुना जो पैदा नहीं हुए थे उन्हें भी मां के पेट में या बाप की पुश्त में थे उनमें भी रूह डालकर ये आवाज़ सुनवायी गयी
3.हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने तौरेत शरीफ में उम्मते मुहम्मदिया का ज़िक्र पढ़ा तो आपने उनसे मुलाक़ात और उनकी आवाज़ें सुनने की ख्वाहिश जाहिर की तो रब ने उम्मते मुहम्मदिया की आवाज़ें उनके बापों की पुश्त में डालकर सुनवाई
4. मां के पेट में
5. क़ब्र में मुनकर नकीर के सवालात के वक़्त
6. मैदाने महशर में
हवाला (तफ़सीरे अज़ीज़ी,सूरह बक़र,सफह 407 )
हवाला (तफ़सीरे नईमी,पारा 9,सफह 386)
हर इंसान के जिस्म में 2 रूह होती है एक रूहे यक़्ज़ा यानि रूहे सैलानी जो कि नींद की हालत में निकल जाती है और घूमती फिरती है जिससे की हम ख्वाब देखते हैं और दूसरी रुहे हयात यानि रूहे सुल्तानी ये मौत के वक़्त निकलती है
हवाला ( तफ़सीरे सावी,जिल्द 2,सफह 18)
मरने के बाद मुसलमान की कुछ की रूहें क़ब्र पर कुछ की चाह ज़म-ज़म पर कुछ की आसमान व ज़मीन के बीच कुछ की इल्लीन में कुछ की सब्ज़ परिंदों में अर्श के नीचे और कुछ की जन्नत में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व हज़रते सारह की निगरानी में रहती हैं और काफ़िरों में कुछ की रूहें वादिये बरहूत के कुएं में कुछ की मरघट पर कुछ की सातों ज़मीन के नीचे तक कुछ की सिज्जीन में और कुछ की हज़रे मौत पर
हवाला ( फतावा रज़वियह,जिल्द 4,सफह 125)
जन्नत और दोज़ख
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Aashurah juma ka din,log apne apne kaamo me lage honge koi jaanwar ko chaara laga chuka hoga aur doodh duhne ko taiyar ho raha hoga koi kapda khareed raha hoga to koi khaana khaane ko baitha hoga ki achanak ek aawaz sunayi degi jo pahle to seeti ki tarah halke halke shuru hogi aur badhte badhte is had tak ho jayegi ki bijli ki garaj uske saamne halki maloom hogi log dahshat kji wajah se marne lagenge,baadal fhat jayega zameen phat jayegi samandar ubal padega aasman tootkar gir jayega sitare chaand suraj sab jhad jayenge aur pahaad ruyi ki tarah idhar udhar udte honge,farishte isi ashna me iblees layeen ko dhoondte honge ki uski rooh qabz karen aur wo faagta firega hatta ki ek maqaam par uski rooh qabz ki jayegi bani aadam par har har insaan ko jitni takleefein huyi hongi wo sab ikatthi karke us layeen par daali jayegi,yahan tak ki jab kuchh fana ho jayega aur jin 7 cheezon ke baare me aata hai ki ye fana nahin honge yaani Arsh Kursi Lauh Qalam Rooh Jannat aur Dozakh ek aan ke liye usko bhi fana kar diya jayega,tamam farishte yahan tak ki hazrat israfeel alaihissalam aur unka soor bhi fana ho jayega tab hazrat israyeel yaani malkul maut alaihissalam Rub ki baargah me arz karenge maula sab mar gaye bas tera ye banda hi rah gaya hai to Rub farmayega ki tu bhi mar ja aur wo bhi mar jayenge,ab sirf ek hi baadshah ki baadshahat hogi phir wo pukarega ki aaj kiski baadshahat hai kahan gaye wo bade bade jaabir baadshah ab kaun hai jo use jawab de phir khud hi kahega 'LILLAHIL WAAHIDIL QAHHAR" yaani aaj bas ek ALLAH ki baadshahat hai,phir jab wo chahega to hazrat israfeel alaihissalam ko zinda karega aur dobara soor phoonkne ka hukm dega yaad rahe ki har soor ki musafat 6 maah ki hogi aur dono soor ke beech 40 saal ki muddat hogi
Ref [ Zalzalatus sa'at,safah 15-17]
Ref [Bahare shariyat,hissa 1,safah 34]
Ref [ Jalalain,paara 8,safah 277]
Ref [ Khazayenul irfan,safah 553]
ARSH
◆Arsh makhlukaat me sabse bada jism hai jo ki harkat wa sukoon qubool karta hai
Ref [ Mawahib laduniya,jild 1,safah 118]
◆Saaton zameeno aasman kursi ke saamne aise hain jaise bade se maidan me chhota sa chhalla pada ho usi tarah kursi bhi arsh ke saamne aise hi hai jaise ki bade se maidan me chhota sa chhalla
Ref [ Almalfooz,hissa 4,safah 64]
◆ Arsh ko uthane waale 4 farishte hain jinke panjo se lekar ghutno tak ke darmiyan 500 saal ki raah jitni doori hai
Ref [ Khazin,jild 7,safah 120]
KURSI
◆ Kursi saatwen aasman ke oopar hai jise farishte uthaye hue hain aur uske oopar arsh hai
Ref [ Tafseere saavi,jild 1,safah 107]
◆ Arsh ke uthane waale farishte aur kursi ke uthane waale farishto ke beech 70 hijaab tareeki ke aur 70 hijaab noor ke haayal hai aur har hijaab ki motayi 500 saal jitni raah hai,agar aisa na hota to kursi ke uthane waale farishte arsh ko uthane waale farishto ke noor se jal jaate
Ref [ Khaazin,jild 7,safah 228]
LAUHE MAHFOOZ
◆ Lauh safed moti se bana hua hai aur arsh se mila hua hai jo ki uski daahini taraf se oopar ka hissa hai aur neeche ka hissa ek farishte ki goud me hai,lauh ko lauh isliye kahte hain ki wo zyadti wa nuksaan aur shaitan ke tasarruf se paak hai
Ref [ Khaazin,jild 7,safah 193]
◆ Lauhe mahfooz me likha hua quran ka har harf kohe qaaf jitna bada hai aur usi ki neeche uska maana bhi darj hai
Ref [ Alitqaan,jild 1,safah 58]
◆Lauh ka ilm ALLAH ke siwa uski ata se uske Rasoolo aur waliyon ko bhi hota hai
Ref [ Almalfooz,hissa 1,safah 66]
◆Lauh ke beecho beech ye alfaaz likhe hain jinka tarjuma ye hai ki "ALLAH ke siwa koi ma'bood nahin wo ek hai uska deen islaam hai MUHAMMAD uske bande wa Rasool hain,to jo koi ALLAH par imaan layega aur uske waade ki tasdeeq karega aur uskr rasool ki pairvi karega to ALLAH use jannat me daakhil karega"
Ref [ Jalalain,hashia 9,safah 496]
QALAM
◆ Qalam noor ka bana hua hai aur iski lambayi 500 saal jitni raah hai,qalam ne sabse pahle lauh par BISMILLAH sharif likha uske baad ALLAH ki tauheed wa tareef likhi phir qayamat tak jo kuchh hone waala tha sab kuchh likh diya,baaz riwayton me iski taadad 12 aayi hai jinke alag alag naan aur martabe hain
Ref [Madarejun nubuwat,jild 1,safah 303]
ROOH
◆Iska sahi ilm to ALLAH Rabbul izzat ko hi hai haan baaz riwayton me ye aata hai ki rooh ek lateef jism hai jo ki kaseef jismo ke saath mili huyi hai jaise hari lakdi me paani
Ref [ Sharahus sudoor,safah 133]
◆ Rooh ke paiad hone ki kayi riwayat hai sarkare Aalahazrat raziyallahu taala anhu jism se 2000 saal pahle farmate hain
Ref [ Fatawa razviyah,jild 9,safah 65]
◆Insaan ke jism me rooh baadshah hai jiske 2 wazeer hain ek nafs jiska markaz naaf ke neeche hai aur doosra qalb jiska markaz deene ke baayein taraf ka wo hissa jise dil bhi kaha jaata hai
Ref [ Almalfooz,hissa 3,safah 63]
◆ Insaan ke andar 6 baar rooh daakhil huyi ya hogi
1. Meesak ke din daakhil huyi jab ALLAH ne hazrat aadam alaihissalam ki pusht se unki zurriyat nikaali aur sabse apni rabubiyat ka iqraar liya
2. Jab hazrat ibraheem alaihissalam ne khanaye kaaba ki tameer ki to Rub ke hukm par aapne hajj ka elaan kiya jise tamam insano ne suna aur jo paida nahim hue the unhein bhi maa ke shikam me ya baap ki pusht me unki roohein daalkar ye aawaz sunwayi gayi
3. Hazrat moosa alaihissalam ne taurait sharif me ummate muhammadiya ka zikr padha to aapne unse mulakaat aur unki aawazein sunne ki khwahish zaahir ki to Rub ne unki aawazein unke baapo ke pusht me daalkar sunwayi
4. Maa ke peit me
5. Qabr me munkar nakeer ke sawaalat ke waqt
6. Maidane mahshar me
Ref ( Tafseere azeezi,surah baqar,safah 407 )
Ref [ Tafseere nayimi,paara 9,safah 386】
◆ Har insaan ke jism me 2 rooh hoti hain ek roohe yaqza yaani roohe sailani jo ki neend ke waqt nikal jaati hai aur ghoomti phirti hai jisse ki hum khwab dekhte hain aur doosri rrohe hayaat yaani roohe sultani jo ki maut ke waqt nikalti hai
Ref [ Tafseere saavi,jild 2,safah 18]
◆ Marne baad musalman ki roohein qabr par kuchh ki chah zam-zam par kuchh ki aasmano zameen ke beech kuchh ki illeen me kuchh ki sabz parindo me arsh ke neeche aur kuchh ki jannat me hazrat ibraheem alaihissalam wa hazrate saarah raziyallahu taala anha ki nigarani mr raha karti hain isi tarah kaafiron me kuchh ki roohein waadiye barhoot ke kunwe me kuchh ki marghat par kuchh ki saato zameen ke neeche kuchh ki sijjeen me aur kuchh ki hazre maut par rahti hain
Ref ( Fatawa razviyah,jild 4,safah 125)
JANNAT wa DOZAKH
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